"Full many a Gem of purest Ray Serene,
The dark unfathom'd Caves of Ocean bear;
Full many a Flower is born to blush unseen,
And waste its sweetness on the desert Air."
-(Thomas Gray:Elegy Written in a Country Churchyard)
मैं छिपाना जानता
तो जग मुझे साधु समझता,
शत्रु मेरा बन गया है
छल-रहित व्यव्हार मेरा I
-डॉ. हरिवंश राय बच्चन
اگر مجھے گناہوں پر پردہ ڈالنا آتا
تو دنیا مجھے
فرشتہ سمجھتی
میرا معصوم چَلَن
ہی
میرا رکیب ہے
- دوکتور حرونش رہے بچچاں
If
I knew how to hide sins
I'd
have been considered a saint by the world
My
tactless straightforward behavior
Is
my only enemy
माँ
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आती है चौका-बासन,
चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ ।
चिड़ियों के चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती,
घर की कुंड़ी जैसी माँ ।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां ।
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक Album में
चंचल लड़की जैसी माँ ।
- निदा
फ़ाज़ली
بیسن کی
سوندھی روٹی پر کہتی چٹنی جیسی ما
یاد آتی ہے چکا باسان چمٹا پھونکنی
جیسی ما
بانس کی خرری خط کے اوپر ہر آہٹ
پر کان دھرے
آدھی سو آدھی جاگی تھکی دوپہری جیسی ما
چڑیوں کے چہکار میں گنجے رادھا موہن
الی الی
مرگی کی آواز سے کھلتی گھر کی
کنڈی جیسی ما
بیوی , بیٹی , بہن , پڑوسن ٹھوڈی ٹھوڈی سی سب میں
دیں بھر اک رسسی کے اوپر چلتی
نتنی جیسی ما
بانٹ کے اپنا چہرہ ماتھا , آنکھیں جانے
کہاں گئی
پھٹے پرانے اک البم میں چنچل لداکی
جیسی ما
ندا فاضلی
Introduction
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं
समाना चाहता है, जो बीन उर में
विकल उस शुन्य की झनंकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं
जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसीका कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं
कली की पंखुडीं पर ओस-कण में
रंगीले स्वपन का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रुंदन अनमोल धन कवि का, इसी से
पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं
मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिस्में चुका सौ बार हूँ मैं
न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं
बंधा तुफान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं ।।
- रामधारी सिंह दिनकर
ठु
ठुकरा दो या प्यार करो
देव! तुम्हारे
कई उपासक कई ढंग से आते हैं।
सेवा में बहुमुल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं॥
धूमधाम से साजबाज से वे मंदिर में आते हैं।
मुक्तामणि बहुमुल्य
वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं॥
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी।
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी॥
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार
नहीं।
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं॥
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं।
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं॥
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी।
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ! चली आयी॥
पूजा और पुजापा प्रभुवर! इसी पुजारिन को समझो।
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो॥
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ।
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ॥
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो॥
- सुभद्रा कुमारी चौहान
To sorrow
I bade good morrow
And thought to leave her far behind;
But cheerly, cheerly,
She loves me dearly;
She is so constant to me, and so kind,
I would deceive her,
And so leave her,
But ah! She is so constant and so kind
--John Keats
मधुबन भोगें, मरू उपदेशें
मेरे वंश रिवाज़ नहीं है ;
मैं सुख पर, सुषमा पर रीझा
इसकी मुझको लाज नहीं है I
-डॉ. हरिवंश राय बच्चन
خود بگچوں کی شیر کرو
دنیا -جہاں کو ریگستانو میں بھٹکنے کی نصیحت دو
میرے خاندان کا رواز نہیں
اگرچے میں کوبصورتی پر فدا ہا
مجھے اسکے حیاء نہیں
- دوکتور حرونش رہے بچچاں
Yourself dwell in the
cool shadow of an oasis
Preach others to roam in
deserts
Is not the tradition of
my family
I do adore the Bliss of
Beauty
But I am not ashamed
- Dr. Harivansh Ray Bachchan
|
No comments:
Post a Comment